Dharm Ki Yatra - Zarra Singh
परम के प्रांत में पहुँचा दूँ
रहकर साथ तेरे
मेरा प्रेम तत्पर रहे
हर पग में तेरे
ऊँचाई आसमान की हो
या धरती की दूरी
धर्म की ये यात्रा
करा दूँ तेरी पूरी
निब मेरी, अब से है तेरी
रखले सहज कर
हमेशा के लिए सौंप दिए
तेरे हर पग पर
धर्म से उत्पन्न प्रेम रहे
प्रेम में सरलता
सरलता के बिना कैसे
धर्म की पवित्रता
परम के प्रांत में पहुँचा दूँ
रहकर साथ तेरे
मेरा प्रेम तत्पर रहे
हर पग में तेरे
ऊँचाई आसमान की हो
या धरती की दूरी
धर्म की ये यात्रा
करा दूँ तेरी पूरी
आसान नहीं चलना
सहज भी नहीं उतना
जितना सब जानता है
और,बोलता है
कोई जाने न कितना
यह धर्म है सच्चा
हर पग चलते रहो
रखो प्रेम भावना
धर्म ऊँचाई भी
है ज़मीन भी है
एहसास करा दूँ
हर पल तेरा
मैं हूँ, मैं ही हूँ
चल तुझे पार करा दूँ
परम के प्रांत में पहुँचा दूँ
रहकर साथ तेरे
मेरा प्रेम तत्पर रहे
हर पग में तेरे
ऊँचाई आसमान की हो
या धरती की दूरी
धर्म की ये यात्रा
करा दूँ तेरी पूरी
(END)
Dharm Ki Yatra - Zarra Singh